बंद क़िताब हूं मैं,
कभी मिलु तो खोल कर देखना।
खोलने पर.....
एक ताला लगा मिलेगा,
तुम दिमाग़ नहीं ,
दिल से खोलने की कोशिश करना
कोई लय, ताल, सुर नहीं है उसमे,
पर तुम गहराई मे जाने की हिम्मत करना।
ये मुलाकात बड़ी ख़ास होगी तुम्हारी,
तुम उसकी खुशबु को याद रखना।
लफ्ज़ बहुत होगें जो शिकायतों से भरे होंगे,
तुम बस समझने की कोशिश करना।
थोड़ी मशक्कत लगेगी समझने मे,
तुम बस अपने एहसासों को पास रखना।
हां तकलीफ़ भी बहुत होगी तुम्हे पढ़कर,
अपने पास मे एक रुमाल भी जरूर रखना।
आख़री पन्ना अभी अंत नही होगा,
तुम अश्कों को भी थोडा बचा कर रखना।
कभी फिर मिले किसी मोड़ पर,
तो मेरी खुशबु से मुझे पहचान लेना ।
पुरी खुल जाऊंगी मैं तुमसे रूबरू होकर,
तुम बस समेट कर अपने पास रख लेना ।
बंद क़िताब हूं मैं,
कभी मिलु तो खोल कर देखना।।
A Poem by Pardyotma
Pardyotma this side. I have done my graduation from DU this year. If I talk about my hobbies then I love writing,pencil sketching and listening music.
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